जिंदगी प्यार का गीत–८

जिंदगी प्यार का गीत


कुछ देर तक दोनो खामोशी से अपनी अपनी कॉफी पीते रहे, दोनो के ही सामने रखे हुए सैंडविच अनछुए ही पड़े थे। भूख शायद मर सी गई थी।
अचानक रोहन को कुछ याद आया, उसने आशु को कहा तुम कॉफी पियो मैं अभी आया, कैफे से बाहर आकर उसने सबसे पहले घर फोन किया और मां बाबूजी को बताया कि किसी जरूरी काम की वजह से उसे 4/5 दिन चंडीगढ़ ही रुकना पड़ेगा इसलिए वो चिंतित ना हों, साथ ही बाबूजी को शॉप खुलवाने और बंद करवाने का भी बता दिया, बाकी काम के लिए तो लड़के थे ही। साथ ही उसने किसी के हाथ कुछ जोड़ी कपड़े मंगवा लिए।
फिर अपने पार्टनर को फोन कर के उस को सारी बात समझाते हुए अपने ठहरने का इंतजाम किसी ठीक से होटल में करने का कह दिया, वैसे उसे पता था अगले एक दो दिन तो हॉस्पिटल में ही रुकना पड़ेगा।
ये सब इंतजामात कर के वो वापस कैफे में आया तो देखा आशु फिर से किसी ख्याल में गुम बैठी है, उसके चेहरे पर दर्द की गहरी लकीरें साफ दिख रही थी।
रोहन ने मन में ठान लिया अब वो आशु को इस दर्द को और सहने नही देगा, अब वो उसकी एक नही सुनेगा, उसके लिए दुनिया से लड़ जायेगा। इस दृढ़ निश्चय के साथ उसने आशु की तरफ कदम बढ़ा दिए।
उसने हल्के से खंखार कर आशु को यथार्थ की दुनिया में वापस आने में मदद की।
ओह, आ गए आप.......उसने कहा
तुम ने कुछ खाया नही, उसने पूछा, मन नही है वो बोली।
देखो अभी पूरी रात पड़ी है, रोहन बोला, खाली पेट नही गुजरेगी। क्यों न एक एक कॉफी के साथ ये सैंडविच खा लें, मुझे भूख लग रही है।
हम्म, अच्छा, हां ठीक है, उसने सहमति में सर हिला दिया।
रोहन जा कर दोबारा दो कप गर्मागर्म कॉफी ले आया, साथ ही एक दो चिप्स के पैकेट भी।
दोनो ने अपने अपने सैंडविच और कॉफी खतम किए और icu के वेटिंग हाल की तरफ चल दिए।
शाम गहराने लगी थी, धीरे धीरे हॉस्पिटल की हलचल भी कम होती जा रही थी।
हाल में बहुत सारी कुर्सियां रखी थी जिसपर कुछ लोग, जिनके मरीज icu में भर्ती थे, बैठे हुए थे। अब सब रात गुजारने की तैयारी कर रहे थे।
एक कोने में आशु और रोहन ने भी दो कुर्सियों पर कब्जा जमा लिया। रोहन उसे बता चुका था जब तक रिहान ठीक नही हो जाता वो कहीं भी जाने वाला नही था।
दोनो खामोशी से आमने सामने बैठ गए और अपने अपने ख्यालों में खो से गए।
आशु बीच बीच में उठ कर शीशे के पार रिहान को देख लेती पर वो तो अभी भी बेहोश ही था।
धीरे धीरे रात गहराने लग गई थी, इस बीच रोहन के पार्टनर ने 2/3 कंबल भिजवा दिए थे। चंडीगढ़ में रात ठंडी होनी शुरू हो गई थी।
रात के 10 बजते बजते, हाल की रोशनी मद्धम कर दी गई थी, लोग अपनी अपनी कुर्सी पर चादर कंबल लपेट कर या तो बैठे थे या उंघ रहे थे। आशु और रोहन की आंखों से नींद कोसों दूर थी और खामोशी पसरी हुई थी। पर दोनो के ही मन में बहुत उथल पथल मची हुई थी।
कुछ देर बाद, रोहन से रहा नही गया, आशु अपने ही ख्यालों में खोई सी थी।
उसने आखिर पूछ ही लिया, सुनो आशु, उसने कहा।
हां हां...... कहो रोहन।
एक बात मुझे समझ नही आई, वो बोला
क्या..... आशु जानते हुए भी जैसे अनजान बन रही थी।
तुम्हारी मांग सूनी क्यों है...... तुम तो शादी शुदा हो ना.....क्या.....? रोहन ने प्रश्न अधूरा ही छोड़ दिया।
एक लंबी सांस लेकर, आशु बोली, लंबी कहानी है, क्या करोगे जान कर।
तुम नही बताना चाहती तो.......
नही नही, ऐसी बात नहीं मैं तुमको बेकार ही अपने दुखों की दास्तान सुनाना नही चाहती......
रोहन ने आगे बढ़कर उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया, उसकी आंखों में आंखें डाल कर बोला, क्या मैं इतना पराया हो गया कि तुम मुझे इस काबिल भी नहीं समझती....
आशु की आंखें भर आई, थोड़ी देर तक दोनो चुपचाप एक दूसरे को देखते रहे..... आशु ने रोहन का हाथ कस कर पकड़ रखा था, मानो कह रही हो अब मुझे छोड़ कर मत जाना..… उसकी आंखों से अश्रु धारा अविरल बहे जा रही थी। बरसों का गुबार आज धुल रहा था।
बहुत देर बाद उसने खुद को संयत किया, अपने पल्ले से अपने आंसू पोंछे और रोहन की तरफ देख कर बोली....

मां को जब पहला दिल का दौरा पड़ा उस समय पापा के एक दोस्त थे मनोहर जी, वो पापा को बचपन से जानते थे, और कुछ ही साल पहले वापस लौटे थे, उन्होंने और उनके बेटे अमृत ने ही मां को हॉस्पिटल पहुंचाया और भैया को खबर भी की, वरना मां तो शायद घर पर ही पड़े पड़े..…
फिर उन्होंने सारा टाइम मां का ख्याल भी रखा, हम लोगों के आने के बाद भी।
मां उनका अहसान मानने लगी, और बिना किसी से पूछे उन्हें अमृत और मेरी शादी का वचन दे दिया। उस समय मां की हालत ऐसी नही थी की मैं उनकी मर्जी के खिलाफ जा पाती, तो आनन फानन में मेरी शादी अमृत से हो गई।
अमृत शकल सूरत से अच्छा था, एक फैक्ट्री में कार्यरत भी था और फिर मनोहर जी पापा के पुराने दोस्त थे, इसलिए ज्यादा छानबीन भी नही की गई। घर में केवल मनोहर जी और अमृत यही दो प्राणी थे।
शुरू शुरू में वो मुझसे बहुत अच्छा व्यवहार करता था, पर कुछ दिन बाद उसने और उसके पिता ने अपने असली रंग दिखाने शुरू कर दिए।
दोनो एक नंबर के जुआरी और शराबी थे। घर की जो भी आमदनी होती दोनो बाप बेटे जुए और शराब में उड़ा देते। यहां तक कि अब उनकी नजर मेरी कमाई पर भी रहने लगी। मुझ से जोर जबरदस्ती होती, पैसे छीन लिए जाते, घर में राशन हो ना हो दोनो को इस से कोई मतलब नहीं था। रोज रात को नशे में धुत दोनो आते और फिर अमृत बहशियों की तरह मुझ पर टूट पड़ता। मैने बहुत समझाने की कोशिश की पर दोनो पर कोई असर ही ना होता। उल्टा अमृत गाहे बगाहे मुझ पर हाथ उठा देता, गाली गलौज पर उतर आता।
मां की तबियत ठीक नहीं रहती थी तो उनसे भी क्या कहती, एक दिन भाई भाभी को सब बताया पर उन्होंने मुझे टका सा जवाब दे दिया, तुम जानो और तुम्हारा परिवार हमको परेशान न करो। अब मेरे पास उस नर्क में जीने के सिवा कोई चारा नहीं था।
तुम मुझे भी तो बता सकती थी... रोहन उसकी बात काट कर बोला
किस मुंह से तुम्हे कहती, बिना कुछ कहे तुमसे मुंह फेर लिया था ना, आशु के दिल का दर्द जुबान पर आ गया। रोहन के भी दिल में एक फांस सी चुभ गई।
फिर..... उसने इतना ही कहा .....
शादी को अभी 2 महीने ही हुए थे कि मेरी कोख में रिहान आ गया।
बाप बनने की उम्मीद में अमृत के बर्ताव में थोड़ी नरमी जरूर आई, पर उसकी लत ज्यों की त्यों बनी रही।
एक रात नशे में घर आ रहे थे दोनो बाप बेटे तो रास्ते में  एक ट्रक से एक्सीडेंट हो गया। मनोहर जी को तो मामूली चोटें आई पर अमृत कमर से नीचे अपाहिज हो गया।
उसके इस एक्सीडेंट से मां को ऐसा सदमा लगा कि उन्हे एक बड़ा दिल का दौरा पड़ा और उन्होंने घर पर ही दम तोड दिया।
मनोहर जी, अमृत और भाई भाभी मानो सारा दोष मेरी किस्मत का ही मान रहे थे।
भाई भाभी तो मौके की तलाश में थे मां के जाते ही उन्होंने मुझ से नाता ही तोड़ दिया।
अमृत भी करीब 4 महीने हॉस्पिटल में रहा, जिसने घर की हालत बद से बदतर कर दी।
इधर रिहान का भी जन्म हो गया, मुझे लगा अब इस दुनिया में मेरे जीने का सहारा ये बच्चा ही है।
अपाहिज होने से अमृत की नौकरी चली गई, घर का सारा खर्च मेरे जिम्मे था ही। मनोहर जी और अमृत ने अब घर पर ही दिन रात पीना शुरू कर दिया।
मैं दिन में रिहान को पड़ोस की एक महिला को देकर काम पर जाती और फिर घर आ कर घर के सब काम और खाना पीना का इंतजाम करती, अमृत और मनोहर जी की डांट मार भी सहती, सब इसलिए की अपने बेटे को बाप का नाम दे सकूं।
हमेशा सोचती शायद कभी तो ये लोग समझेंगे और सुधरेंगे, देखते देखते रिहान 6 महीने का होने आया। फिर एक दिन वो हुआ जिसकी मैने कल्पना भी नहीं की थी। मैं रात का खाना बना कर सबको खिला कर अपने कमरे में रिहान के साथ सो गई थी। अचानक लगा की कोई मेरे पास है और मुझे छूने की कोशिश कर रहा है।
देख कर घिन आ गई मेरे पिता समान ससुर मुझ से संबंध बनाने की कोशिश कर रहे थे, नशे में धुत वो भूल गया था कि मैं उसके बेटे की ब्याहता पत्नी हूं।
मैने उसे अपने से परे ढकेलना चाहा पर वो तो निर्लज्जता से हंसने लगा, बोला अमृत तो कुछ कर नही सकता पर तुमको तो जरूरत होगी ना, इतना कह कर वो किसी भूखे भेड़िए सा मुझ पर टूट पड़ा। मैने खुद को पूरी ताकत से उससे अलग किया और उसको कहा कि मैं अभी जाकर अमृत को सब बताती हूं। इस बात पर वो ठठा मार कर हंस पड़ा और बेशर्मी से बोला उसे सब पता है, उसी ने मुझे तेरे पास भेजा है।
ये बात सुन कर मुझे खुद से और अमृत से नफरत सी हो गई, मैने किस जानवर से शादी कर ली।
एक बार फिर वो लहराता हुआ मेरी तरफ बढ़ा, अचानक मेरे हाथ में कमरे में रखा एक फूलदान हाथ आ गया और इससे पहले वो मुझे पकड़ पाता मैने पूरी ताकत से वो फूलदान उसके सर पर मार दिया।
चोट खा कर वो जमीन पर गिर पड़ा और उसके सर से खून बहने लगा।
मैने खुद को संभालते हुए, अलमारी से अपने और रिहान के कुछ कपड़े, कुछ मामूली जेवर और कागजात जल्दी जल्दी एक बैग में भरे, और रात के अंधेरे में उस घर को हमेशा के लिए छोड़ दिया.......

क्रमश:

आभार – नवीन पहल  – १६.१२.२०२१ 🌹🙏💐👍


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2 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

16-Dec-2021 10:53 PM

Nice

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Swati Sharma

16-Dec-2021 10:00 PM

Very nice

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